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जलियांवाला बाग में शहीद हुए लोगों की याद में लिखी गई यह कहानी, आप भी जाने

परिमल-हीन पराग दाग़ सा बना पड़ा है,

हा! यह प्यारा बाग़ खून से सना पड़ा है.

Noida (NewsReach) : प्रसिद्ध कवियत्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने पंक्तियां आज से 102 वर्ष पहले जलियांवाला बाग में शहीद हुए लोगों की याद में लिखी थी। हिंदुस्तान में अंग्रेजों के औपनिवेशिक शासन की यंत्रणाओँ और हिंदुस्तानीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की कुर्बानी की नुमाइंदगी 1919 में हुए इस कत्लेआम से अधिक कोई नहीं कर सकता। वर्ष 1919 में 13 अप्रैल की तारखी और वैशाखी का दिन, पंजाब का अमृतसर और वहां का जालियांवाला बाग वहां पर जनरल डायर के नेतृत्व में गोलियां बरसाईं गईं।सैकड़ों लोग मारे गए. जालियांवाला बाग नरसंहार की बोलानियों से तो सभी रूबरू हैं।

लेकिन क्या आपको पता है कि इससे पहले भी अंग्रेजों ने इससे कई गुणा भयंकर और विभित्स नरसंहार को अंजाम दिया था। ये बोलानी है 1857 की जब दुनिया अपने पहले सामूहिक नरसंहार से मुखिातिब हुई थी और इसकी व्यापकता का अंदाजा इसके आंकड़ों से लगा सकते हैं। इस नरसंहार में करीब एक करोड़ हिंदुस्तानीयों की मृत्यु हो गई थी।

1857 का विद्रोह आज भी लोगों को याद है। अंग्रेजों के विरूद्ध हुए इस विद्रोह में कई क्रांतिकारी शहीद हो गए थे, जोकि इतिहास के पन्‍नों में रेट्ज हैं। लेकिन कुछ ऐसे भी थे, जिनका आज तक कहीं जिक्र नहीं किया गया।सभ्यताओं का युद्ध लेखक और मुंबई स्थित इतिहासकार अमरेश मिश्रा का कहना है कि 1857 के दौर में एक गुमनाम नरसंहार की वजह से करीब 10 मिलियन लोगों की मृत्यु हो गई। ब्रिटेन उस समय दुनिया की महासंदेह्ति था, लेकिन मिश्रा कहते हैं, वह अपने सबसे बेसंदेहीमती अधिकार यानी हिंदुस्तान को खोने के करीब आ गया था।

आज इस रिपोर्ट के माध्यम से हिंदुस्तानीय विद्रोह के इतिहास का एक टकरावास्पद नया पन्ना पलटने जा रहे हैं जो गुमनामी के साये में पिछले 150 वर्षों से खोया हुआ है। जो एक समय में 19वीं शताब्दी में किसी भी यूरोपीय संदेह्ति के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गया था।जिसके बाद अंग्रेजों ने एक अभियान चलाकर लाखों लोगों का सफाया किया जिस किसी ने भी उनके विरूद्ध उठने की हौसला की। गिलगिट से लेकर मदुरई तक और मणिपुर से लेकर महादेश तक ऐसा कोई इलाका नहीं बचा था जो इस विद्रोह से अछूता रहा हो। राष्ट्र के पहले स्वाधीनता संग्राम के बारे में अब तक न कही गई ये कुछ ऐसी बातें हैं जिन्हें अमरेश मिश्रा ने अपनी पुस्तक ‘War of Civilisations: India AD 1857’ में बयां किया है। मिश्रा का दावा है कि पारंपरिक इतिहास में सिर्फ 1 लाख हिंदुस्तानीय सैनिकों की गिनती की गई है, जो क्रूर प्रतिअध्ययन में मारे गए थे। लेकिन किसी ने भी ब्रिटिश सेना द्वारा मारे गए विद्रोहियों और नागरिकों की संख्या की गणना नहीं की।

लेखक का कहना है कि उन्हें ये जानकर आश्चर्य हुआ कि “इतिहास की बैलेंस बुक” यह नहीं बता सकी कि 1857 के बाद कितने हिंदुस्तानीय मारे गए. ये एक ऐसा नरसंहार था, जिसमें लाखों लोग गायब हो गए थे ।अंग्रेजों को लगता था कि जीतने का एकमात्र तरीका कस्बों और गांवों में पूरी आबादी को नष्ट करना है। मिश्रा ने गॉर्जियन को बताते हुए कहा कि ये सरल और क्रूर था। उनके रास्ते में जो भी हिंदुस्तानीय खड़े हुए उन्हें मार दिया गया। लेकिन इसकी व्यापकता को गुप्त रखा गया है। उनकी गणना को कुछ इस तरह रखा गया- मारे गए धार्मिक प्रतिरोध सेनानियों की संख्या से संबंधित रिकॉर्ड हैं या तो इस्लामी मुजाहिदीन या हिंदू योद्धा संन्यासी जो अंग्रेजों को बाहर निकालने के लिए प्रतिबद्ध थे।

1857 के 150 साल पूरे होने के बाद अमरेश मिश्रा की पुस्तक उन तथ्यों को उजागर करती है, जिन्हें आज तक शायद जानबूझकर दबाया-छिपाया ही जाता रहा है। मसलन, विद्रोह को कुचलने के लिए अंग्रेजों द्वारा किए गए नरसंहार की व्यापकता और भयावहता पर इतने प्रामाणिक आंकड़े और विवरण पहले इतिहास की पुस्तकों में नहीं दिए जाते थे। दूसरा, विद्रोह को कुचलने के लिए अंग्रेजों को हिंदुस्तानीय जमींदारों और राजे-रजवाड़ों द्वारा सौदेबाजी के अनुसार जो योगदान किया गया, उसके बारे में भी इतिहास में अब तक बहुत कुछ छिपाया जाता रहा है। यह जानना दिलचस्प होगा कि हिंदुस्तान की आजादी की पहली लड़ाई को बर्बरता से कुचलने में जिन राजे-रजवाड़ों और जमींदारों ने अंग्रेजों का योगदान किया, उन्हीं के वंशज बाद में आजादी के बाद सियासी दलों में शामिल होकर सत्ता में आ गए और आज भी शासन कर रहे हैं।

Munish Kumar

Munish is a senior journalist with more than 18 years of experience. Freelance photo journalist with some leading newspapers, magazines, and news websites, has extensively contributing to The Times of India, Delhi Times, Wire, ANI, PTI, Nav Bharat Times & Business Byte and is now associated with Local Post as Editor

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