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किताबों से दोस्ती की कोशिश है बुक्सबास्केट्स

किताबें सच्ची दोस्त होती हैं। जीवनभर की दोस्त, हर पल की दोस्त। दुनियाभर में जो कुछ रचा-गढ़ा गया है, उन शब्दरूपी दोस्तों को आपके करीब लाने की कोशिश है बुक्स बास्केट्स।

मेरठ : करीब दो साल पहले लॉकडाउन ने हमारे जीवन में, हमारी आदतों में बहुत कुछ बदल दिया है। घर में क्वॉलिटी टाइम बिताने की आदत भी इसी में से एक रही, जिसने परिवार और अच्छी आदतों के मायने समझाए। बहुत लोगों ने पढ़ने की आदत भी डाल ली। घर बैठे चीजें पाने आदत तो थी ही। होम डिलीवरी और ऑनलाइन शॉपिंग वैसे तो कई बरसों से सिस्टम में है, लेकिन इधर, आप रिटेलर्स से बात करेंगे, तो पाएंगे कि लॉकडाउन के बाद से इसका चलन बढ़ा है। किताबों की दुनिया भी इससे अछूती नहीं है। कुछ उपलब्धता की भी बात है।

www.booksbaskets.in

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किताबों का बाजार, खासकर हिंदी किताबों का बाजार बहुत सीमित रहा है। पढ़ने वालों की संख्या भी। हिंदी के प्रकाशकों की समस्या किताबों को अधिक महंगा नहीं कर पाना और पाठकों की समस्या अच्छे साहित्य का अभाव और अनुपलब्धता रही है। अधिकांश शहरों में पुस्तक विक्रेताओं की संख्या नहीं के बराबर है। जो हैं भी, वे अधिक मार्जिन और ग्राहकों के हिसाब से अंग्रेजी पुस्तकों की बिक्री में रुचि रखते हैं। एक रोज, इन्हीं मुद्दों पर अपने सीनियर से चर्चा करते हुए बुक्सबास्केट्स का विचार जन्मा। वह दो दशक से हिंदी के प्रकाशक भी हैं, लिहाजा हिंदी किताबों की वस्तु-स्थिति को करीब से बता सकते थे। प्रकाशन जगत का मेरा निजी अनुभव भी इस पहल की हामी भर रहा था। किताबों का यह ऑनलाइन बाजार फिलहाल हिंदी किताबों पर फोकस करेगा। इनमें विश्व-विख्यात अंग्रेजी बेस्टसेलर्स के अनुवाद से लेकर हिंदी में लिखी गईं तमाम अच्छी किताबों को एक मंच पर उचित दामों पर उपलब्ध कराने का प्रयास रहेगा।

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24 घंटे के भीतर किताबों को भारतीय डाक के माध्यम से डिस्पैच किया जाता है। डाक विभाग का विकल्प इसलिए चुना गया कि दूर-दराज और ग्रामीण इलाकों के पाठकों तक किताबें आसानी से पहुंचाई जा सकें। निजी कूरियर कंपनियों के साथ काम करने में यह समस्या आ सकती थी। शब्दरूपी दोस्तों को देशभर में पहुंचाने के लिए आगे भी कई योजनाएं हैं। बुक-फेयर लगाने और दूर-दराज में बुक स्टोर खोलने का विचार है। कितना अमल हो पाता है, समय बताएगा। फिलहाल, मिशन पर चल पड़े हैं, किताबों से दोस्ती कराने के लिए।

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