क्यों होता है तुलसी विवाह ? जाने इसके पीछे की पौराणिक कहानी
आज मतलब 4 नवम्बर को तुलसी विवाह है। ये विवाह सदियों से चलता आ रहा हैं। भगवान विष्णु की पूजा बिना तुलसी के अधूरी मानी जाती हैं। पर आपने कभी सोचा है ऐसा क्यों होता हैं ? इसके पीछे एक पौराणिक कहानी है जो आज हम बताएँगे।
तुलसी का असली नाम वृंदा था। वृंदा बचपन से ही विष्णु भक्त थी। राक्षस कुल की होने के बाद भी उसने कभी भी भक्ति नहीं छोड़ी। उसका विवाह राक्षस राज जलंधर से हुआ। जलंधर का देवताओ के साथ जब युद्ध होने वाला था तब वृंदा ने संकप्ल लिया के वे अनुष्ठान से तभी खड़ी होंगी जब जलंधर विजय होके आए। उसके अनुष्ठान को तोड़ने के लिए भगवान् को जाना पड़ा। ताकि देवताओं की जित हो सके। वो अनुष्ठान से खड़ी हुई और जलंधर का रूप लाए भगवान के पैर छू लिए। बाद में जब उसको पता चला तो उसने भगवान को श्राप दिया पथ्थर के बनने का और खुद सती हो गई। तब से ही वृंदा को तुलसी नाम देकर पूजा जाता हैं। हिंदू धर्म में तुलसी का विशेष महत्व है। तुलसी के पत्ते को हर शुभ और मांगलिक कार्य में इस्तेमाल किया जाता है। हिंदू धर्म में कार्तिक माह में तुलसी का पूजन विशेष रूप से किया जाता है। पंचांग के अनुसार, तुलसी विवाह का आयोजन हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को किया जाता है। इस एकादशी को देवउठनी एकादशी, प्रवोधिनी एकादशी भी कहते है।
मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु चार माह की लंबी निद्रा के बाद जागते हैं। इसके साथ ही सारे शुभ मुहूर्त खुल जाते हैं। हिंदू धर्म के मानने वालों में इस दिन भगवान विष्णु के शालीग्राम अवतार के साथ माता तुलसी के विवाह करने की परंपरा है ।तुलसी विवाह के साथ ही सभी मांगलिक और धार्मिक कार्य शुरू हो जाते हैं।
तुलसी विवाह पूजा विधि
- इस दिन महिलाएं सुबह जल्दी उठकर नहा लें और नए कपड़े पहने.
- जहां आप पूजा करने वाले हैं उस जगह को अच्छी तरह साफ कर लें और सजा लें.
- इस दिन तुलसी माता को दुल्हन की तरह सोलह श्रृंगार से सजाएं जिसके बाद गन्ना और चुनरी भी चढ़ानी चाहिए.
- तुलसी विवाह करने के लिए सबसे पहले चौकी बिछाएं उस पर तुलसी का पौधा और शालिग्राम को स्थापिक करें.
- तुलसी माता के पौधे के पास ही शालिग्राम भगवान को रखकर दोनों की साथ में पूजा करनी चाहिए.
- उसके बाद गंगाजल छिड़कर घी का दीया जलाएं.
- भगवान शालीग्राम और माता तुलसी दोनों को रोली और चन्दन का टीका लगाएं.
- उसके बाद आप भगवान शालिग्राम को हाथों में लेकर तुलसी के चारों ओर परिक्रमा करें.
- फिर तुलसी को भगवान शालिग्राम की बाईं ओर रखकर उन दोनों की आरती उतारे. इसके बाद उनका विवाह संपन्न हो जाएगा.