New DelhiWorld

हाइफा का युद्ध भारतीय सैनिकों की जाबांजी और बहादुरी प्रतीक – जनरल डॉक्टर वी.के. सिंह

“हाइफा युद्ध दिवस” के अवसर पर इजरायल के निर्माण की नींव रखने वाले व प्रथम विश्व युद्ध में निर्णायक भूमिका निभाने वाले अदम्य साहसी वीर बहादुर अमर सैनिकों को नई दिल्ली में युद्ध स्मारक पर केंद्रीय राज्यमंत्री जनरल डॉक्टर वी.के. सिंह ने भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।

नई दिल्ली: केंद्रीय सड़क परिवहन, राजमार्ग एवं नागर विमानन राज्यमंत्री व गाजियाबाद के सांसद जनरल डॉक्टर वी.के. सिंह ने हाइफा युद्ध दिवस के अवसर पर प्रथम विश्व युद्ध में निर्णायक भूमिका निभाने वाले वीर बहादुर अमर सैनिकों को नई दिल्ली में भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। 23 सितंबर 1918 को मौजूदा इजरायल के हाइफा शहर में एक ऐसी लड़ाई लड़ी गई, जिसमें भारतीयों की ताकत का पूरी दुनिया ने लोहा माना और ना सिर्फ वर्ल्ड वॉर 1 में यह लड़ाई निर्णायक साबित हुई बल्कि इस लड़ाई ने ही इजरायल के बनने की नींव रख दी थी! हाइफा की लड़ाई में भारतीय सेना के घुड़सवार रेजीमेंट ने हिस्सा लिया था.श। उस वक्त देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था और भारतीय सैनिकों ने ब्रिटेन के झंडे के तले यह लड़ाई लड़ी लेकिन इस लड़ाई में भारतीय सैनिक जिस अदम्य साहस और वीरता से लड़े वह इतिहास के पन्नों में सदा के लिए अंकित हो गया।

हाइफा की लड़ाई का इतिहास

प्रथम विश्वयुद्ध के समय हाइफा जर्मनी और तुर्की के कब्जे में था, हाइफा एक तटीय शहर था और सप्लाई और ट्रांसपोर्टेशन और रणनीतिक लिहाज से बेहद अहम था। ब्रिटेन और सहयोगी देशों को प्रथम विश्व युद्ध में जीत के लिए हाइफा पर कब्जा करना बेहद जरूरी था। हालांकि यह एक खतरनाक मिशन था क्योंकि हाइफा में जर्मनी और तुर्की की सेनाओं ने हाइफा के मुख्य द्वार के आसपास सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए हुए थे और हाइफा में घुसना बेहद मुश्किल था, ऐसे में हाइफा पर कब्जा करने की जिम्मेदारी ब्रिटेन ने भारतीय सेना की घुड़सवार ब्रिगेड को दी, उस वक्त ये घुड़सवार ब्रिगेड कई रियासतों जैसे मैसूर, हैदराबाद, पटियाला, अलवर और जोधपुर की सेनाओं को मिलाकर बनाई गई थी, जो विश्वयुद्ध में ब्रिटेन के झंडे तले लड़ाई लड़ रही थी।

इस घुड़सवार ब्रिगेड के सैनिक घोड़ों पर सवार होकर दुश्मन पर हमला करते थे, हथियार के तौर पर उनके पास एक भाला होता था और यह ब्रिगेड बहुत तेजी से अपने दुश्मनों पर हमला करने के लिए जानी जाती थी। हैरानी की बात ये है कि जहां भारतीय सैनिक घोड़ों पर भालों के साथ यह लड़ाई लड़ रहे थे, वहीं जर्मनी और तुर्की की सेनाओं के पास आधुनिक हथियार, मशीनगन, तोप आदि थीं, इसके बावजूद भारतीय सैनिकों ने अदम्य साहस के दम पर युद्ध में जीत हासिल की।

भारतीय सैनिकों की घुड़सवार ब्रिगेड ने किस बहादुरी और वीरता से यह लड़ाई लड़ी, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि युद्ध के बाद भारतीय सैनिकों ने 1350 जर्मन और तुर्की के सैनिकों को बंधक बनाया, इनमें दो जर्मन अफसर और 35 तुर्की सेना के अफसर थे। साथ ही 17 आर्टिलरी गन, चार 4.2 गन, आठ 77 एमएम गन समेत कई हथियारों को जब्त कर लिया था.श। इस लड़ाई में भारत की सेना के मेजर दलपत सिंह शेखावत शहीद हो गए थे और आज भी इजरायल की किताबों में उनकी बहादुरी के किस्से पढ़ाए जाते हैं।

हाइफा पर कब्जा इतना अहम था कि इसके कुछ दिनों के भीतर ही ब्रिटेन और सहयोगी देशों की सेनाओं ने दमिश्क, नाजरथ जैसे कई तटीय और रणनीतिक रूप से अहम शहरों पर कब्जा कर लिया था और तुर्की सल्तनत को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था। हाइफा के साथ ही मौजूदा इजरायल और आसपास का बड़ा इलाका ब्रिटेन के कब्जे में आ गया था और इसी के चलते बाद में इजरायल का उदय हुआ। इस तरह कह सकते हैं कि हाइफा की लड़ाई का इजरायल के गठन में अहम योगदान है।

इजरायल भी भारतीय सैनिकों की जाबांजी और बहादुरी का आज भी कायल है और यही वजह है कि इजरायल के हाइफा शहर में हाइफा युद्ध की याद में स्मारक बना हुआ है और दिल्ली में भी तीन मूर्ति हाइफा स्मारक उस युद्ध के सम्मान में ही बना हुआ है। उल्लेखनीय है कि हाइफा की लड़ाई भी दुनिया के इतिहास में आखिरी घुड़सवार लड़ाई थी, जिसने भारतीयों की ताकत का लोहा पूरी दुनिया में मनवाने कार्य किया था।

Deepak Tyagi

वरिष्ठ पत्रकार, स्तंभकार, रचनाकार व राजनीतिक विश्लेषक ईमेल आईडी :- deepaklawguy@gmail.com, deepaktyagigzb9@gmail.com टविटर हैंडल :- @DeepakTyagiIND

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Back to top button