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    मुश्किलों में भी ख्वाब बुन रही हैं पलकें

    कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता,एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो नई दिल्ली : कवि दुष्यंत कुमार की ये पंक्तियां बहुत आम हैं, लेकिन इनका मर्म आज भी उतनी ही गहराइयां लिये हुए है। जरूरत बस महसूस करने, समझने और उस पर अमल करने की है। भला कौन नहीं चाहेगा आसमां को छू लेना। बचपन से…

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