गाज़ियाबाद के 400 लोगों और मणिपाल अस्पताल के डॉक्टरों ने हार्ट हैल्थ की जागरूकता के लिए वॉक किया
गाज़ियाबाद: लोगों को अपने दिल की सेहत को प्राथमिकता देने के प्रति जागरूक करने के लिए मणिपाल अस्पताल, गाज़ियाबाद ने आज अपनी ‘दिल के रक्षक’/ ‘गार्डियंस ऑफ़ द हार्ट’ पहल के रूप में ‘वर्ल्ड हार्ट डे’ के अवसर पर एक वॉकथॉन का आयोजन किया। 02-किलोमीटर वॉकथॉन की शुरुआत डॉ. भूपेन्द्र सिंह और डॉ. अभिषेक सिंह, हृदय रोग विशेषज्ञ मणिपाल अस्पताल, गाजियाबाद द्वारा हरी झंडी दिखाने के साथ हुई।
यह वॉक सुबह 8 बजे मणिपाल अस्पताल गाज़ियाबाद से शुरू होकर यहीं पर ख़त्म हुई। मणिपाल अस्पताल के डॉक्टरों के साथ-साथ गाज़ियाबाद के 400 से ज़्यादा निवासियों ने वॉकथॉन में सक्रिय रूप से भाग लिया। डॉ. भवतोष शंखधर, मुख्य चिकित्सा अधिकारी (गाज़ियाबाद) ने मुख्य अतिथि के रूप में कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई। वॉकथॉन के बाद प्रतिभागियों ने सीपीआर प्रशिक्षण सत्र में भी भाग लिया और दिल के दौरे और स्ट्रोक जैसी आपातकालीन स्थितियों में लोगों की मदद करने के लिए इस जीवन रक्षक कौशल को सीखा।
वॉकथॉन को हरी झंडी दिखाते हुए, डॉ. भूपेन्द्र सिंह, हृदय रोग विशेषज्ञ, मणिपाल अस्पताल, गाज़ियाबाद ने कहा, “पैदल चलना दिल को सेहतमंद रखने का एक बेहतरीन तरीक़ा है। इससे ब्लड सर्कुलेशन सही रहता है, दिल को मज़बूती मिलती है और दिल के रोग होने का जोख़िम कम हो जाता है। किसी भी मेडिकल इमरजेंसी को संभालने के लिए हम लोगों को सीपीआर प्रशिक्षण के लिए भी प्रोत्साहित करते हैं।” इस पहल के जरिये हमारा उद्देश्य हृदय रोग से होने वाली मौतों को कम करना है।”
प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए, गाज़ियाबाद के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. भवतोष शंखधर ने कहा, “हृदय के स्वास्थ्य को प्राथमिकता देना और जीवनशैली में बदलाव जैसे कि नियमित सुबह की सैर, संतुलित पोषक आहार और हैल्दी वेट मेंटेन रखना महत्वपूर्ण है। इससे ओवरऑल सेहत को बेहतर और दिल को स्वस्थ रखने में मदद मिलेगी। यह वॉकथॉन लोगों को स्वस्थ जीवन और स्वस्थ हृदय के लिए प्रेरित करने के लिए मणिपाल अस्पताल की एक शानदार पहल है।”
वर्ल्ड हार्ट फेडरेशन के आंकड़ों के अनुसार कार्डियोवैस्कुलर डिजीज (सीवीडी) विश्व भर में मृत्यु दर का एक प्रमुख कारण बन गया है, जो 1990 में 12.1 मिलियन से 60% बढ़कर 2021 में 20.5 मिलियन हो गया है। सीवीडी के बारे में जागरूकता बढ़ाना बहुत ज़रूरी है, इसके लिए सरकारी एजेंसियों और निजी स्वास्थ्य संस्थानों के बीच सहयोग की दरकार है।