सवा लाख से एक लड़ाऊं,
चिड़ियन ते मैं बाज तुड़ाऊं,
तबै गुरु गोबिंद सिंह नाम कहाऊं।।
मेरठ: गुरु गोविद सिंह जी के प्रकाश पर्व पर गुरूद्धारे में मनाए जा रहे समारोह का सिख समाज के दसवें गुरू गोबिंद सिंह का प्रकाशोत्सव पर जहां शबद कीर्तन से संगत निहाल हुई, वहीं लंगर सेवा भी होती रही।
गुरु गोबिंद सिंह का जन्मोत्सव हर साल पौष महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है। धर्म की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहने वाले गुरु गोबिंद सिंह ने दूसरों के जीवन में प्रकाश लाने और उनका कल्याण करने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।
खालसा पंथ की स्थापना कर गुरु गोबिंद सिंह ने सिखों को जीवन जीने के लिए पांच ककार-केश, कड़ा, कृपाण, कच्छा और कंघा धारण करने का मंत्र दिया था।
प्रकाशोत्सव पर्व को लेकर मेरठ के गुरुद्वारों को और गुरू ग्रंथ साहिब को फूलों से सुसज्जित किया गया। सुबह से विशेष कीर्तन दीवान सजने के साथ ही दिनभर संगत मत्था टेक कर सरबत के भले की अरदास की गई। गुरुद्वारे में सहज पाठ हुआ। नामचीन रागी जत्थे गुरबाणी, शबदों से संगत को निहाल किया।
सभी की उपस्थिति के बाद कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए पहले संगत के एक-एक सदस्यों ने गुरु ग्रंथ साहिब के समक्ष मत्था टेक कर घर, परिवार और प्रदेश में अमन-चैन एवं सुख, शांति और समृद्धि बने रहने की अरदास की। दरअसल गुरु गोविंद सिंह ने ही गुरु ग्रंथ साहिब को सिखों का गुरु घोषित किया था। सिख धर्म की मान्यताओं के अनुसार, उन्होंने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा और सच्चाई की राह के लिए समर्पित कर दिया था। गुरु गोविंद सिंह के विचार और शिक्षाएं आज भी लोगों के लिए प्रेरणा बनी हुई है।