गाज़ियाबाद: नबोदय दुर्गा पूजा समिति वैशाली सेक्टर 6 दुर्गा पूजा पंडाल में पांच दिन तक विधिविधान से पूजन-अर्चन के बाद बुधवार को मां दुर्गा को नम आंखों से विदाई दी गई। महिलाओं ने मां दुर्गा को सिंदूर लगाकर सुख-समृद्धि की कामना की।
दशमी के दिन विसर्जन से पूर्व बंगाली समाज की महिलाओं ने पारंपरिक रूप से रंग खेला का अनुष्ठान, पूजन किया। महिलाओं ने मां दुर्गा को सिंदूर लगाकर सुख-समृद्धि की कामना की।
सदियों पुरानी परंपरा
इस पर्व को मनाने के पीछे सदियों पुरानी परंपरा जुड़ी है। कहा जाता है कि जिस तरह बेटियां अपने ससुराल से मायके आकर रहती है। फिर कुछ दिनों के बाद अपने घर यानि ससुराल वापिस लौट चली जाती है। ठीक उसी तरह देवी दुर्गा अपने मायके यानि धरती पर आकर रहती हैं। अपने भक्तों को आशीर्वाद देती हैं। फिर 9 दिन बीताने के बाद दशमी तिथि पर अपने घर यानि भगवान शिव के पास मां पार्वती के रूप में कैलाश पर्वत पर वापिस चली जाती हैं। लोग जिस तरह बेटियों को उनके ससुराल जाने पर खाने-पाने, कपड़े आदि सामान भेंट देते हैं। ठीक उसी तरह लोग दुर्गा मां के विसर्जन से पहले उनके पास एक पोटली भरकर बांध देते हैं। इस पोटली में मां के श्रृंगार का सामान, भोग आदि रखा जाता हैं। ताकि उन्हें देवलोक जाते समय रास्ते में कोई परेशानी का सामना ना करना पड़े।
ऐसे निभाई जाती है ये प्रथा
सिंदूर खेला रस्म के दौरान पान के पत्तों को मां दुर्गा के गालों पर स्पर्श किया जाता है। फिर इस पत्ते से मां की मांग भरी जाती है और माथे पर सिंदूर लगाया जाता है। इसके बाद मां दुर्गा को पान और मिठाई आदि का भोग लगाते हैं और उनते आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। इसके बाद सुहागिन महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं और पति की लंबी आयु की कामना करती हैं। ये उत्सव दुर्गा विसर्जन के दिन किया जाता है।