नवमी मतलब नवरात्र का अंतिम दिवस। इस दिन कन्या भोज , हवन होते हे। नवमी के दिन सुबहः पुरे विधि विधान के साथ ही व्रत ख़त्म करे। दुर्गा सप्तशती का पाठ करके विधिवद हवन करें। कन्याओ को भोजन कराने के बाद ही आपका व्रत खोले। नवमी के दिन लौकी न खाएं। अगर नवमी गुरुवार को हो तो केले और दूध का सेवन भी नहीं करना चाहिए।
माँ नवदुर्गा के सहस्त्र नाम हे। देवी के सारे नाम विधि से लेने चाहिए। हर नाम के बाद में नमः लगाकर स्वाहा बोला जाता हे। हवन की सामग्री पूरी अवश्य लाये ताकि माँ की कृपा आप पे बनी रहे। माँ चंडी हवन भी नवमी को होता हे।
नवमी के दिन खाने में शुद्ध सात्विकता बनी रेहनी चाहिए। किसी भी तरह का घर में कलेश न हो इसका ध्यान रखे। माँ को भोग लग जाने के बाद संध्या समय आरती नहीं होगी लेकिन दीपक अवश्य जलाये।
दुर्गापूजा का काल
वैदिक ज्योतिष की काल-गणना के अनुसार हमारा एक वर्ष देवी-देवताओं का एक ‘अहोरात्र’ (दिन-रात) होता है। इस नियम के अनुसार मेषसंक्रांति को देवताओं का प्रात:काल और तुला संक्रांति को उनका सायंकाल होता है।
इसी आधार पर शाक्त तन्त्रों ने मेषसंक्रांति के आसपास चेत्र शुक्ल प्रतिपदा से बासन्तिक नवरात्रि और तुला संक्रांति के आसपास आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से शारदीय नवरात्र का समय निर्धारित किया है। नवरात्रि के ये नौ दिन ‘दुर्गा पूजा’ के लिए सबसे प्रशस्त होते हैं।
शारदीय नवरात्र का महत्व
इन दोनों नवरात्रियों में शारदीय नवरात्र की महिमा सर्वोपरि है। ‘शरदकाले महापूजा क्रियते या च वाष्रेकी।’ दुर्गा सप्तशती के इस वचन के अनुसार शारदीय नवरात्र की पूजा वार्षिक पूजा होने के कारण ‘महापूजा’ कहलाती है। गुजरात-महाराष्ट्र से लेकर बंगाल-असम तक पूरे उत्तर भारत में इन दिनों ‘दुर्गा पूजा’ का होना, घर-घर में दुर्गापाठ, व्रत-उपवास एवं कन्याओं का पूजन होगा – इसकी महिमा और जनता की आस्था के मुखर साक्ष्य हैं।
कन्या-पूजन
अपनी कुल परम्परा के अनुसार कुछ लोग नवरात्र की अष्टमी को और कुछ लोग नवमी को माँ दुर्गा की विशेष पूजा एवं हवन करने के बाद कन्यापूजन करते हैं। कहीं-कहीं यह पूजन सप्तमी को भी करने का प्रचलन है।
कन्या पूजन में दो वर्ष से दस वर्ष तक की आयु वाली नौ कन्याओं और एक बटुक का पूजन किया जाता है। इसकी प्रक्रिया में सर्वप्रथम कन्याओं के पैर धोकर, उनके मस्तक पर रोली-चावल से टीका लगाकर, हाथ में कलावा (मौली) बाँध, पुष्प या पुष्पमाला समर्पित कर कन्याओं को चुनरी उढ़ाकर हलवा, पूड़ी, चना एवं दक्षिणा देकर श्रद्धापूर्वक उनको प्रणाम करना चाहिए। कुछ लोग अपनी परंपरा के अनुसार कन्याओं को चूड़ी, रिबन व श्रृंगार की वस्तुएं भी भेंट करते हैं। कन्याएं माँ दुर्गा का भौतिक एक रूप हैं। इनकी श्रृद्धाभक्ति से पूजा करने से माँ दुर्गा प्रसन्न होती हैं।
सप्तमी/अष्टमी/नवमी की पूजा
नवरात्र में अपनी कुल परम्परा के अनुसार सप्तमी, अष्टमी या नवमी को माँ दुर्गा की विशेष पूजा की जाती है। इसमें एकाग्रतापूर्वक जप, श्रद्धा एवं भक्ति से पूजन एवं हवन, मनोयोगपूर्वक पाठ तथा विधिवत कन्याओं का पूजन किया जाता है। इससे मनुष्य की सभी कामनाएं पूरी हो जाती हैं।