गाजियाबाद में हत्या करके गया था जेल; बन गया शायर, बुधवार को जेल में हुआ किताब का विमोचन
गाजियाबाद : डासना जेल में कुख्यात कैदियों के बीच में रहने वाले एक विचाराधीन कैदी ने 11 साल जेल में बंदी के रूप में बिताएं। जब उसे जेल में आंसुओं के सिवा कुछ ना मिला तो अपने दिल के दर्द को उसने एक दिन जेल की महफिल में शब्दों में पिरोकर जेल में बंद बंदियों और जेल के अधिकारियों को शेरों औ शायरी मे पिरोकर सुना डाला। पहली कविता पर ही उसे खूब तालियां मिलीं। जेल अधीक्षक आलोक सिंह ने जब जेल में बंद इस बंदी की कविता सुनी तो उन्होंने इसका नाम इससे पूछा तो इसने उन्हें बताया कि मेरा नाम शकील है और वह 302, 307 के मामले में विचाराधीन है।
शकील 11 वर्ष के लंबे समय से जेल में बिना जमानत के कारण जेल में सजा काट रहा था और जेल में आंसू बहाता रहता था। उसकी कहानी जानकर जेल अधीक्षक ने उसकी पढ़ाई के बारे में पूछा तो वह बिना पढ़ा लिखा अपने आप को बताने लगा। ऐसे में जेल अधीक्षक ने उसकी मदद करके इग्नू से उसकी पढ़ाई करवाई और उसे प्रोत्साहित किया कि वह अपनी कविताओं को लिखना शुरू करें । जेल मे पढ़ाई के बाद उसे एक एनजीओ का साथ भी मिल गया। जेल में कुख्यात कैदियों के बीच में यह कवि शकील अमरुद्दीन अपनी कविताएं लिखने लगा और बीते साल उसे जेल से जमानत भी मिल गई।
जमानत मिलने के बाद भी वह अपनी कविता लिखता रहा और एनजीओ के माध्यम से उसकी एक किताब भी छप गई। जिसका नाम “गुले मुकद्दस” उसने रखा है। आज उसका लोकार्पण जेल अधीक्षक आलोक कुमार की मौजूदगी में गाजियाबाद की डासना जेल पर हुआ है। इस किताब को लिखने वाले बंदी शकील जो अब जमानत पर है का कहना है कि आज उसका जेल में देखा गया सपना पूरा हो गया। किताब में लिखी कविताओं के माध्यम से उसने अपना जीवन समाज के सामने रखा है। जेल अधीक्षक ने भी शकील की काबिलियत की खूब तारीफ की है।