1 मार्च को महाशिवरात्रि है। इस दिन कई भक्त शिव के मंदिरों में जाते हैं। शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों का महत्व बहुत अधिक है। उत्तराखंड के अल्मोड़ा से करीब 35 किमी दूर एक ऐसा मंदिर है जिसकी मान्यता ज्योतिर्लिंग जैसी है। इस मंदिर का इतिहास पांडवों से भी जुड़ा है। इधर, शंकराचार्य के समय से भट्ट परिवार कई पीढ़ियों से पूजा करता आ रहा है।
यहां के मंदिर से जुड़ी प्रचलित कथाओं के अनुसार आदि गुरु शंकराचार्य ने केदारनाथ धाम जाने से पहले क्षेत्र के कई मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया था। उस समय उन्होंने इस मंदिर का जीर्णोद्धार भी करवाया था। इनके अलावा, क्षेत्र के विभिन्न राजाओं ने भी समय-समय पर मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया है। मंदिर की वास्तुकला नागर शैली की है। जागेश्वर धाम में छोटे-बड़े सौ से अधिक मंदिर हैं। अधिकांश मंदिरों में शिवलिंग स्थापित है। यहां अन्य देवी-देवताओं के मंदिर और मूर्तियां स्थापित हैं।
पांडवों से जुड़ा है मंदिर का इतिहास
इस मंदिर का इतिहास पांडवों से जुड़ा है। ऐसा माना जाता है कि यह मंदिर पांडवों के समय में लकड़ी से बना था। बाद के समय में जब लकड़ी के बने मंदिर खराब होने लगे तो अन्य राजाओं ने इन मंदिरों को पत्थरों से बनवाया।
इसे जागेश्वर धाम क्यों कहा जाता है
इस क्षेत्र में शिव जी और सात ऋषियों ने भी तपस्या की थी। इनके अलावा और भी कई ऋषियों ने यहां तपस्या और मंत्रोच्चार किया। मंत्रों के निरंतर जाप से मंदिर में स्थापित शिवलिंग जाग्रत अवस्था में है, इसलिए इसे जागेश्वर धाम कहा जाने लगा है।
महाशिवरात्रि पर की जाती है विशेष महा आरती
जागेश्वर धाम रोजाना सुबह करीब 4-5 बजे खुलता है और दिन भर में तीन विशेष आरती होती है। महाशिवरात्रि पर 4 विशेष आरती होती है। सुबह, दोपहर और शाम की आरती के बाद रात करीब 12 बजे महाआरती की जाती है।