Spiritual

इस तरह करे स्वच्छता की देवी शीतला माता की पूजा, होंगे यह बड़े लाभ

हिन्दू धर्म के विविध पर्व-त्योहारों को मनाने के पीछे वैज्ञानिक सोच है। होली के एक हफ्ते बाद मनाये जाने वाले शीतलाष्टमी त्योहार पर शीतला माता का पूजन कर व्रत रखा जाता है। मान्यता है कि माता के पूजन से चेचक, खसरा जैसे संक्रामक रोगों का मुक्ति मिलती है। चूंकि ऋतु-बदलाव के दौरान इस समय संक्रामक रोगों के प्रकोप की काफी आशंका रहती है, इसलिए इन रोगों से बचाव के लिए श्रद्धालु शीतलाष्टमी के दिन माता का विधिपूर्वक पूजन करते हैं जिससे शरीर स्वस्थ बना रहे।

शीतला माता एक मशहूर हिन्दू देवी हैं। इनका प्राचीनकाल से ही बहुत अधिक महत्त्व रहा है। शीतला-मंदिरों में प्रायः माता शीतला को गर्दभ पर ही आसीन दिखाया गया है। शीतला माता के संग ज्वरासुर- ज्वर का दैत्य, ओलै चंडी बीबी – हैजे की देवी, चैंसठ रोग, घेंटुकर्ण- त्वचा-रोग के देवता एवं रक्तवती-रक्त संक्रमण की देवी होते हैं। इनके कलश में दाल के दानों के रूप में विषाणु या शीतल स्वास्थ्यवर्धक एवं रोगाणु नासंदेह जल होता है।

सामान्य तौर पर शीतला माता का पूजन चैत्र कृष्ण पक्ष की अष्टमी को किया जाता है। भगवती शीतला की पूजा का विधान भी विशिष्ट है। शीतलाष्टमी के एक दिन पूर्व उन्हें भोग लगाने के लिए बासी खाना यानी बसौड़ा तैयार किया जाता है। अष्टमी के दिन बासी पदार्थ ही देवी को अर्पित करते हैं और भक्तों के बीच प्रसाद के रूप में इसे वितरित करते हैं। उत्तर हिंदुस्तान में शीतलाष्टमी का त्योहार बसौड़ा नाम से भी प्रचलित है। मान्यता है कि इस दिन के बाद से बासी खाना नहीं खाना चाहिए। यह ऋतु का आखिरी दिन होता है जब बासी खाना खा सकते हैं।

इस व्रत में रसोई की दीवार पर हाथ की पांच अंगुली घी से लगाई जाती है । इस पर भूमिकाी और चावल लगाकर देवी माता के गीत गाये जाते हैं. इसके साथ, शीतला स्तोत्र तथा बोलानी सुनी जाती है। रात में जोत जलाई जाती है। एक थाली में बासी भोजन रखकर परिवार के सारे मेम्बरों का हाथ लगवाकर शीतला माता के मंदिर में चढ़ाते हैं। इनकी उपासना से स्वच्छता और पर्यावरण को सुरक्षित रखने की प्रेरणा मिलती है।
 
शीतला माता की महत्ता के संबंध में स्कंद पुराण में विस्तृत वर्णन मिलता है। इसमें उल्लिखित है कि शीतला देवी का वाहन गर्दभ है। ये हाथों में कलश, सूप, मार्जन (झाड़ू) और नीम के पत्ते धारण किये हैं। इनका प्रतीकात्मक महत्व है। आशय यह है कि चेचक का रोगी व्यग्रता में कपड़ा उतार देता है। सूप से रोगी को हवा की जाती है। झाड़ू से चेचक के फोड़े फट जाते हैं। नीम की पत्तियां फोड़ों को सड़ने नहीं देतीं। रोगी को ठंडा जल अच्छा लगता है, अतः कलश का महत्व है। गर्दभ की लीद के लेपन से चेचक के दाग मिट जाते हैं।

स्कंद पुराण में शीतला माता की अर्चना का स्तोत्र है शीतलाष्टक। बताया जाता है कि इस स्तोत्र की रचना भगवान शंकर ने की थी। यह स्तोत्र शीतला देवी की महिमा का गान कर उनकी उपासना के लिए भक्तों को प्रेरित करता है।

वन्शरीरं शीतलां देवीं रासभस्थां दिगम्बराम.

मार्जनीकलशोपेतां शूर्पालड्कृतमस्तकाम..

अर्थात गर्दभ पर विराजमान दिगम्बरा, हाथ में झाड़ू तथा कलश धारण करने वाली, सूप से अलंकृत मस्तकवाली भगवती शीतला की मैं वंदना करता हूं। शीतला माता के इस वंदना मंत्र से साफ है कि ये स्वच्छता की अधिष्ठात्री देवी हैं। हाथ में मार्जनी (झाड़ू) होने का अर्थ है कि हम लोगों को भी सफाई के प्रति सतर्क होना चाहिए। कलश से तात्पर्य है कि स्वच्छता रहने पर ही सेहत रूपी समृद्धि आती है। मान्यता के मुताबिक, इस व्रत को रखने से शीतला देवी प्रसन्न होती हैं और व्रती के कुल में चेचक, खसरा, दाह, ज्वर, पीतज्वर, दुर्गधयुक्त फोड़े और नेत्रों के रोग आदि दूर हो जाते हैं। माता के रोगी के लिए यह व्रत बहुत मददगार है।

आमतौर पर, शीतला रोग के आक्रमण के समय रोगी दाह (जलन) से लगातार पीड़ित रहता है। उसे शीतलता की बहुत आवश्यकता होती है। गर्दभ पिंडी (गधे की लीद) की गंध से फोड़ों का रेट्द कम हो जाता है। नीम के पत्तों से फोड़े सड़ते नहीं है और जलघट भी उसके पास रखना जरूरी है, इससे शीतलता मिलती है।
 
लोक किंवदंतियों के मुताबिक बसौड़ा की पूजा माता शीतला को प्रसन्न करने के लिए की जाती है । कहते हैं कि एक बार किसी गांव में गांववासी शीतला माता की पूजा-अर्चना कर रहे थे तो मां को गांववासियों ने गरम भोजन प्रसादस्वरूप चढ़ा दिया। शीतलता की प्रतिमूर्ति मां भवानी का गर्म भोजन से मुंह जल गया तो वे नाराज हो गईं और उन्होंने कोपदृष्टि से संपूर्ण गांव में आग लगा दी। बस सिर्फ एक बुढिया का घर सुरक्षित बचा हुआ था। गांव वालों ने जाकर उस बुढिया से घर न जलने के बारे में पूछा तो बुढिया ने मां शीतला को भोजन खिलाने वाली बात कही और कहा कि उन्होंने रात को ही भोजन बनाकर मां को भोग में ठंडा-बासी भोजन खिलाया। जिससे मां ने प्रसन्न होकर बुढिया का घर जलने से बचा लिया। बुढिया की बात सुनकर गांव वालों ने शीतलामाता से क्षमा मांगी और रंगपंचमी के बाद आने वाली सप्तमी के दिन उन्हें बासी भोजन खिलाकर मां का बसौड़ा पूजन किया।


LP News

Local Post News Network

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Back to top button