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अमेरिकी डॉलर दुनिया की सबसे मजबूत करेंसी कैसे बन गई ?

 1944 से पहले तक ज्यादातर देश अपनी मुद्रा को सोने की मूल्य के आधार पर तय करते थे। यानी उस देश की सरकार के पास सोने का जितना भंडार है, बस उतनी ही मूल्य की करेंसी जारी करते थे।

1944 में न्यू हैम्पशर के ब्रेटन वुड्स में दुनिया के विकसित देश मिले और उन्होंने अमेरिकी डॉलर के मुकाबले सभी मुद्राओं की विनिमय दर यानी करेंसी एक्सचेंज रेट को तय किया, क्योंकि उस वक्त अमेरिका के पास सबसे ज्यादा सोने का भंडार था।

इसका असर एक छोटे से उदाहरण से समझिए। मान लीजिए भारत को पाकिस्तान की करेंसी पर भरोसा नहीं है। वो उससे डॉलर में कारोबार कर सकता था। क्योंकि उसे पता था कि अमेरिकी डॉलर डूबेगा नहीं और जरूरत पड़ने पर अमेरिका डॉलर के बदले सोना दे देगा।

ये व्यवस्था करीब 3 दशक चली। 1970 की शुरुआत में कई देशों ने डॉलर के बदले सोने की मांग शुरू कर दी। ये देश अमेरिका को डॉलर देते और उसके बदले में सोना लेते थे। इससे अमेरिका का स्वर्ण भंडार खत्म होने लगा।

डॉलर की मजबूती की एक बड़ी वजह थी। दरअसल 1945 में अमेरिका के राष्ट्रपति रूजवेल्ट ने सऊदी के साथ एक करार किया। करार की शर्त ये थी कि उसकी सुरक्षा अमेरिका करेगा और बदले में सऊदी सिर्फ डॉलर में तेल बेचेगा। यानी अगर देशों को तेल खरीदना है, तो उनके पास डॉलर होना जरूरी है।

फिलहाल दुनिया का 80% व्यापार डॉलर में होता है और दुनिया का करीब 60% विदेशी मुद्रा भंडार डॉलर में है।

डॉलर की पावर के दम पर अमेरिका बैठे-बिठाए कैसे अरबों कमाता है?

जवाबः SWIFT नेटवर्क के दम पर अमेरिका बैठे-बिठाए अरबों कमाता है। मान लीजिए XYZ ग्रुप को पाकिस्तान के किसी कारोबारी से 10 हजार डॉलर की सूरजमुखी खरीदना है। SWIFT नेटवर्क के जरिए ये ट्रांजैक्शन 5 स्टेप में होगा…

स्टेप-1: सबसे पहले XYZ ग्रुप अपने भारतीय बैंक को 10 हजार डॉलर के बराबर भारतीय रुपए भेजेगा।

स्टेप-2: भारतीय बैंकों का अमेरिकी बैंक में खाता होता है। वहां से वो डॉलर में एक्सचेंज करके पेमेंट करने को कहेंगे।

स्टेप-3: भारतीय खाते वाला अमेरिकी बैंक दूसरे पाकिस्तानी खाते वाले अमेरिकी बैंक में पैसा ट्रांसफर करेगा।

स्टेप-4: दूसरा अमेरिकी बैंक पाकिस्तानी बैंक में पैसे ट्रांसफर कर देगा।

स्टेप-5: पाकिस्तानी बैंक से कारोबारी 10 हजार डॉलर के बराबर पाकिस्तानी रुपए निकाल सकता है।

SWIFT नेटवर्क में फिलहाल 200 से ज्यादा देशों के 11,000 बैंक शामिल हैं। जो अमेरिकी बैंकों में अपना विदेशी मुद्रा भंडार रखते हैं। अब सारा पैसा तो व्यापार में लगा नहीं होता, इसलिए देश अपने एक्स्ट्रा पैसे को अमेरिकी बॉन्ड में लगा देते हैं, जिससे कुछ ब्याज मिलता रहे। सभी देशों को मिलाकर ये पैसा करीब 7 ट्रिलियन डॉलर है। यानी भारत की इकोनॉमी से भी दोगुना ज्यादा। इस पैसे का इस्तेमाल अमेरिका अपनी ग्रोथ में करता है।

(This story has not been edited by localpostit.com and is auto generated from a syndicated feed we subscribe to)

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