मुश्किलों में भी ख्वाब बुन रही हैं पलकें

कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता,
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो
नई दिल्ली : कवि दुष्यंत कुमार की ये पंक्तियां बहुत आम हैं, लेकिन इनका मर्म आज भी उतनी ही गहराइयां लिये हुए है। जरूरत बस महसूस करने, समझने और उस पर अमल करने की है। भला कौन नहीं चाहेगा आसमां को छू लेना। बचपन से यौवन की दहलीज को ऐसे सपने ही खटखटाते हैं। बुलंदियों की मीनारों पर जो ताज सजे हैं, अंगड़ाई लेती आंखों को उनकी चमक ही दिखाई देती है। उनके लिए झेला संघर्ष नजर नहीं आता। जिन्होंने ये संघर्ष झेल लिया, वे मुकाम भी पा जाते हैं। छोटे शहरों में ऐसे संघर्षों और सपनों का चोली-दामन जैसा साथ रहता है। डिजिटल और ग्लोबल होती आज की दुनिया में भी बहुत कुछ है, जो छोटे और मध्यम शहरों तक पहुंचा ही नहीं है। कई सुविधाएं और कई मानसिकताएं। कई बेड़ियां हैं और ढेर सारी जद्दोजहद। इसके बावजूद पलकें ख्वाब बुन रही हैं और हौसले उनकी परवरिश कर रहे हैं। आसान नहीं होता यह सब। खासकर तब, जब समाज का बंधा-बंधाया नजरिया और रवैया हो। 12वीं के बाद ये ही करना है, ग्रैजुएशन के बाद नौकरी और फिर तुरत-फुरत शादी हो जानी चाहिए, करियर के लिए वही मेडिकल, इंजीनियर या फिर दुकान खोल लो। बेटियों को ये नहीं करना-वो नहीं करना, फलाना-ढिमकाना।



हाल में टीवी पर शार्क टैंक सीरियल जिन्होंने देखा, उन्होंने यह बात नोटिस की होगी कि फंडिंग मांगने वाले ज्यादातर लोगों के स्टार्ट अप छोटे या मध्यम श्रेणी के शहरों से उपजे थे। खुद शार्क टैंक भी छोटे से शुरुआत करके इस कुर्सी तक पहुंचने लायक बने। इस लायक बनने के लिए एक निरंतरता और धीरज की जरूरत होती है। वह आता है, खुद पर विश्वास बनाए रखने से। अपने हुनर पर विश्वास रखने से। इसी तरह का एक और उदाहरण यूट्यूब ने भी पेश किया। हाल में यूट्यूब ने राष्ट्रीय स्तर पर विज्ञापन देकर बताया कि उसके माध्यम से कितने लोगों को रोजगार मिला है। मध्यम शहरों के मध्यम वर्गीय लोगों ने यूट्यूब के जरिए न सिर्फ अपने स्टार्ट अप्स शुरू किए हैं, बल्कि करियर का नया विकल्प भी पाया है। वाकई, डिजिटल युग ने कितनी राहें आसान कर दी हैं, एंटरप्रन्योर बनने के लिए भी और उससे फायदा उठाने के लिए भी। आज घर के सामान से लेकर, पढ़ने-पढ़ाने तक आखिर क्या ऑनलाइन उपलब्ध नहीं है, इनके पीछे भी सपने ही तो हैं, जो हम और आप जैसे आम लोगों ने भी देखे हैं।
